बांदा, 12 जनवरी (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश में बांदा जिले की पुलिस कानून व्यवस्था के नाम पर किस हद तक जा सकती है, इसकी बानगी एक न्यायालय को भेजी रिपोर्ट से मिल रही है। किसानों की समस्याएं उठाने पर एक सामाजिक कार्यकर्ता को कमासिन पुलिस ने 'उग्रवादी नेता' और सत्तारूढ़ दल के विधायक को 'जिलाधिकारी' बताया है। मामला पिछले साल की नौ मई से जुड़ा है। गैर सरकारी संगठन 'बुंदेलखंड तिरहार विकास मंच' के अध्यक्ष प्रमोद आजाद ने किसानों की कर्ज माफी, ओलावृष्टि, सिंचाई आदि समस्याओं के मांगों के समर्थन में सैकड़ों किसानों के साथ कमासिन ब्लॉक परिसर में प्रदर्शन किया था, उस समय उपजिलाधिकारी और सपा के स्थानीय विधायक के कहने पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया था और आजाद को नामजद करते हुए कई किसानों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था।
इस मामले में एक माह की जेल काट कर जमानत पर रिहा होने के बाद प्रमोद आजाद ने सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत विशेष न्यायालय (डकैती) में बबेरू से सपा विधायक विश्वंभर सिंह यादव, उपजिलाधिकारी बबेरू सुरेंद्र प्रसाद यादव और सीओ बबेरू यशवीर सिंह के अलावा 21 नामजद और एक सौ अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का प्रार्थना पत्र दिया। न्यायालय ने कमासिन पुलिस से 10 जनवरी से पूर्व मामले की रिपोर्ट तलब की थी।मामले में नामजद थानाध्यक्ष रामपाल सिंह यादव ने जो आख्या अदालत में पेश की, वह चौंकाने वाली है। दो जनवरी को भेजी गई इस रिपोर्ट में थानाध्यक्ष ने लिखा, "प्रमोद आजाद एक उग्रवादी नेता के रूप में अपने को समाज में स्थापित करने की चाह रखता है। एसडीएम, सीओ और मेरे द्वारा समझाने के बाद भी आजाद और उसके साथियों ने रोड जाम नहीं हटाया और हटाने की कोशिश करने पर पथराव किया।"थानाध्यक्ष ने इस रिपोर्ट की शुरुआती इबारत में बबेरू से सपा के विधायक विश्वंभर सिंह यादव को 'माननीय जिलाधिकारी' शब्द से संबोधित किया है।हालांकि प्रश्नगत मामले में अदालत ने दस जनवरी को हुई सुनवाई में अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है। लेकिन, सबसे अहम सवाल यह है कि मौलिक अधिकारों की मांग करने पर पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति के लिए 'उग्रवादी' जैसे शब्द का इस्तेमाल कितना प्रासंगिक है।--आईएएनएस
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