मुंबई, 12 जनवरी (आईएएनएस)| एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के 2017 के कैलेंडर और डायरी से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी गायब हो गए हैं और उनकी जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ले ली है।
आधिकारिक सूत्रों ने गुरुवार को यह जानकारी देते हुए बताया कि कैलेंडर और डायरी के कवर फोटो को देखकर केवीआईसी के अधिकांश कर्मचारियों और अधिकारियों को झटका लगा। इसमें मोदी को एक बड़े से चरखे पर उसी मुद्रा में खादी बुनते देखा जा सकता है जो कभी गांधीजी की चिर-परिचित मुद्रा हुआ करती थी।दोनों तस्वीरों में थोड़ा फर्क है। लोगों के दिलो-दिमाग में बसी खादी बुनते हुए गांधीजी की ऐतिहासिक तस्वीर का चरखा सामान्य सा दिखता है। इसी के पास बैठकर गांधीजी अपने आधे खुले, आधे बंद शरीर के साथ चरखा चलाते देखे जा सकते हैं। मोदी का चरखा, गांधीजी वाले चरखे के मुकाबले में थोड़ा आधुनिक है और खुद मोदी अपने लकदक कुर्ता-पायजामा और सदरी में नजर आ रहे हैं।केवीआईसी के कर्मचारी हालात की इस नई तस्वीर से हतप्रभ हैं। सरकारी कर्मचारी होने की वजह से खुलकर उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन आज (गुरुवार को) भोजनावकाश के समय उन्होंने कुछ खाया-पिया नहीं। खामोशी से अपना विरोध जताने के लिए वे विले पार्ले स्थित आयोग के मुख्यालय में महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास मुंह पर काली पट्टी बांधकर आधे घंटे तक बैठे रहे।केवीआईसी के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना से इस बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह कोई 'असामान्य बात' नहीं है। अतीत में भी ऐसे बदलाव हो चुके हैं।सक्सेना ने आईएएनएस से कहा, "पूरा खादी उद्योग ही गांधीजी के दर्शन, विचार और आदर्श पर आधारित है। वह केवीआईसी की आत्मा हैं। उनकी अनदेखी करने का तो सवाल ही नहीं उठता।"उन्होंने जोड़ा कि नरेंद्र मोदी लंबे समय से खादी पहन रहे हैं। उन्होंने खादी को आम लोगों ही नहीं, विदेशी हस्तियों के बीच भी लोकप्रिय किया है। उन्होंने खादी को पहनने की अपनी अलग स्टाइल विकसित की है।सक्सेना ने कहा, "सच यह है कि वह (नरेंद्र मोदी) खादी के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर हैं। उनकी सोच केवीआईसी की सोच से मिलती है। यह सोच 'मेक इन इंडिया' के जरिए गांवों को आत्मनिर्भर बनाने, कौशल विकास के जरिए ग्रामीण आबादी को रोजगार मुहैया कराने, खादी बुनने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने, नई खोज करने और इसे बेचने की है। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री युवाओं की प्रेरणा भी हैं।"कार्रवाई के डर से नाम न छापने के आग्रह के साथ केवीआईसी के एक वरिष्ठ कर्मी ने कहा, "हम सरकार द्वारा सुनियोजित तरीके से महात्मा गांधी के विचारों, दर्शन और आदर्शो से मुक्ति पाने की कोशिशों से दुखी हैं। बीते साल, पहली कोशिश प्रधानमंत्री के फोटो को कैलेंडर में शामिल कर की गई थी।"2016 में केवीआईसी के कर्मचारी संघ ने कैलेंडर मामले को प्रबंधन के समक्ष सख्ती से उठाया था और तब उनसे वादा किया गया था कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा।कर्मचारी ने कहा, "लेकिन, इस साल तो सबकुछ साफ ही हो गया। तस्वीरें भी और गांधीजी की शिक्षाएं भी; जिन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान खादी को आम गरीब अवाम के लिए स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनाया था। इस बार कैलेंडर और डायरी से गांधीजी गायब ही कर दिए गए।"--आईएएनएस
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