अष्टमी अर्थात नवरात्र का आठवां दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी के पूजन का दिन है। दुर्गापूजा में यह दिन एक बड़े पर्व की तरह मनाया जाता है। माता महागौरी का वाहन बैल है। बैल पर सवार माता महागौरी के एक हाथ मे डमरू और दूसरे हाथ मे त्रिशूल सुशोभित होता है, जबकि तीसरा हाथ अभय मुद्रा में और चैथा हाथ वर मुद्रा में होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता महागौरी ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और भगवान शंकर उनके तप से प्र्रसन्न हुए थे तो माता ने शिव जी को पति के रूप में प्राप्त किया था।
इसीलिए आज के दिन अविवाहित महिलाएं माता की विशेष उपासना करती हैं और भगवान शिव की तरह पति की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें भी आज के दिन माता की पूजा करके उनसे अपने पति की रक्षा का वर मांगती है।
माँ महागौरी अपने भक्तों को अनेक कष्टो से मुक्त करने वाली माता हैं। देवी पुराण में वर्णित विधि के अनुसार माता की पूजा करने पर वांछित फल की प्राप्ति अवश्य होती है।
माता महागौरी की आराधना से मनुष्य के अनेक पापों से मुक्ति मिलती है। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। माता महागौरी की कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
माता महागौरी का ध्यान लगाने के लिए निचे दिये गये मंत्र का जाप करें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नवरात्र के आठवें दिन प्रातः काल के समय सबसे पहले अन्नकूट पूजा यानी कन्या पूजन का भी विधान है। दो वर्ष से लेकर दस वर्ष तक की 9 कन्याओं को भोज करावाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये 9 कन्याएं आज के दिन नौ देवियों का स्वरूप होती हैं।
देवी पुराण और अन्य देवी ग्रंथो के आधार पर कन्याओं के स्वरूप का वर्णन कुछ इस प्रकार दिये गये हैं। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या रोहिणी, छह वर्ष की कन्या कालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी, नौ वर्ष की कन्या दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा मानी जाती है।
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