जानिये माता कालरात्रि की महिमा
नवरात्रि का सातवां दिन दुर्गा माता की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस दिन साधक मन सहस्रार चक्र में निहित रहता है। सहस्रार चक्र मस्तिस्क का शीर्ष भाग में स्थ्ति शक्ति का केन्द्र होता है।
साधक का मन सहस्रार में होने के कारण उसके लिए ब्रम्हाण की समस्त सिध्दियों के द्वार खुलने लगते हैं। साधक को मां कालरात्रि के पूजन करने से सिध्दी की प्राप्ति होती है।
देवी पुराण में वर्णित माता के रूप में बताया गया है कि माता का वाहन गर्दभ है। माता की नासिका से स्वसन के समय भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं।
मां कालरात्रि के स्मरण से बुरी शक्तियों से प्रभाव खत्म होने लगता है। और रोग और भय से मुक्ति प्राप्त होती है। यह दिन तंत्र विद्या और ज्योतिष आदि की शक्तियों की
कालरात्रि मां के शरीर का रंग घने अंधकार की तरह श्याह होता है। इनके मस्तिष्क पर दिव्य ज्योति बनी होती है। माता के बाल घने और बिजली की तरह चमकते रहते हैं।
दशदिकपाल देवी की अर्चना करने हेतु घर में सभी जगह दीप जलाकर और नीम के पेड़ पर अर्घ दिया जाता है। गर्दभ की सवारी कर रही देवी को शीतला माता भी कहा जाता है।
सप्तमी के दिन भी नवरात्रि के सामान्य दिनो की तरह ही पूजा की जाती है लेकिन यह त्रंत्र विद्या के जागृत करने का विशेष दिन हेाता है। साधक इस दिन माता को बलि भी चढ़ाते है और मदिरा भी चढाने का प्रावधान है।
माता कालरात्रि के इस मंत्र का जाप करने से न केवल घर की बाधांए दूर होगी बल्कि घर में शांति की स्थापना भी होती है।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता,
लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा,
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी।
देवि पुराण में वर्णित विधि के अनुसार जो भी साधक मां की साधना करके ध्यान लगाता है उसे सिध्दि की प्राप्ति अवश्य होती है।
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