नवरात्रि का चैथा दिन माता कूष्माण्डा की पूजा अर्चना का दिन है। ऐसा माना जाता है कि माता कूष्माण्डा की मंद मुस्कान से ही सम्पूर्ण ब्रम्हांण की उत्पत्ति हुई है। जब सृष्टि की रचना नही हुई थी और चारो तरफ अंधकार व्याप्त था तब माता ने अपनी हंसी से इस संसार की रचना की इसी कारण ही इन्हें आदिशक्ति या शक्ति स्वरूपा कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त आठ भुजा होने के कारण इन्हे अष्ठभुजी देवी भी कहा जाता है। इनकी आठों भुजाओं में कमण्डल, धनुष बाण, अमृत कलश , चक्र, गदा कमल पुष्प आदि शोभित होते हैं और माता अपने एक हाथ से भक्तों को आशिष प्रदान करती हैं।
अष्टभुजी माता का ओज हमें अपने जीवन में लगातार कर्म करते रहने और यश और कीर्ति प्राप्त करने को प्रोत्साहित करता है। उनकी मुस्कान हममें जीवटता उत्पन्न करता है और जीवन के तमाम कठिनायों को हसकर टालते हुए आगे बढने की प्रेंरणा देता है।
देवि पुराण में वर्णित पूजन विधि के अनुरूप माता का ध्यान लगाने से सिध्दि और सफलता दोनो प्राप्त होती है। चैथे दिन चंचल मन के साथ पवित्र विचार रखकर मां कूष्माण्डा की आराधना करने की बात कही गयी है
माता का संस्मरण करने के लिए निचे दिये गये मंत्र का उच्चारण किया जाता है:
सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च्,
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा ।
माता कूष्माण्डा का निवास सुर्य लोक में होता है केवल इन्ही के पास सुर्य के तेज को सह पाने की क्षमता होती है। इसीलिए माता का संस्मरण करने हेतु सबसे पहले सूर्य देवता को अर्घ देने के बाद उपरोक्त मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
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