नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (आईएएनएस)| आपको हिंसाग्रस्त सीरिया का चार वर्षीय वह बच्चा तो याद होगा ही जिसका चेहरा झुलसा हुआ था। यह बच्चा अमेरिका चुनाव में देश की दो बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच लास वेगास में हुई अंतिम बहस में चर्चा का विषय बन गया था।
हिलेरी ने इस बच्चे को सीरियाई नागरिकों पर रूस की अंधाधुंध बमबारी के पुख्ता सबूत बताया।इस पूरी बहस के दौरान रूस के समर्थन और इसके विरोध में रुझान लोगों को दिखता रहा। हिलेरी ने पश्चिम एशिया में रूस के दखल पर तंज कसे तो ट्रंप ने खुद को पुतिन का मित्र नहीं बताते हुए इससे दूरी बनाए रखी।हालांकि, ट्रंप ने कहा कि रूस के सहयोग से आतंकवाद से निपटा जा सकता है।इससे पहले 'सीएनएन' की एंकर क्रिस्टिन अमानपोर ने भी मॉस्को में रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव का साक्षात्कार लेते हुए उनके समक्ष इसी सीरियाई बच्चे की तस्वीर दिखाते हुए इसे 'मानवता के खिलाफ अपराध' बताया था।लावरोव इस तस्वीर को देखते हुए कुछ भावुक तो हुए और उहोंने इसे एक त्रासदी बताया।लावरोव बहुत शिष्ट हैं और वह संवाददाताओं के साथ बहस में नहीं फंसते। मुझे यकीन है कि उन्हें पता होगा कि यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है।अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन सरकार द्वारा सीरियाई विपक्ष को अपदस्थ करने के लिए एक व्यापक अभियान छेड़ा गया है। इस गठबंधन में सऊदी अरब, कतर और तुर्की भी शामिल हैं।इन दिनों दुष्प्रचार के तुरंत बाद इसकी क्षतिपूर्ति की कोशिशें शुरू हो जाती हैं। इस सीरियाई बच्चे का वीडियो इसका प्रमाण है जो वायरल हो गया।इस अधिप्रचार के तहत एक शख्स (फिक्सर) इस बच्चे को अपने कंधे पर उठाता है और इसे एक ट्रेलर में लेकर चढ़ जाता है जिसे एक स्टूडियो की भांति पहले से ही तैयार रखा गया। कुर्सी पर बैठा वह बच्चा दर्द से कहीं अधिक भौचक होकर देख रहा था।इसके बाद शुरू होता है मीडिया का फोटो सेशन सत्र। मीडियाकर्मी अलग-अलग एंगल से बच्चे की फोटो खींचना शुरू कर देते हैं और इस तरह एक असहाय बच्चा देखते ही देखते रूस की क्रूरता का प्रतीक बना जाता है।जैसे-जैसे यह फोटो सेशन आगे बढ़ता है। इस दुष्प्रचार को गढ़ने वाले लोग (जिन्होंने सफेद हेलमेट पहने हुए थे) हंसते हैं। वे अपनी बनाई योजना पर खुमार कर रहे हैं।रणनीतिक विदेश नीति के लिए मीडिया का इस्तेमाल पहले भी होता रहा है। शीतयुद्ध के दौरान रेडियो फ्री यूरोप का रुख मार्क्सवादी देशों को लेकर काफी लचीला रहा।सोवियत संघ के विघटन के बाद उन्नत प्रौद्योगिकी की वजह से विदेशी हस्तक्षेपों में मीडिया का इस्तेमाल व्यापक स्तर तक पहुंच गया था।मैं जब अगस्त 2011 में सीरिया के दौरे पर गया तो यमन में तानाशाही के खिलाफ और समाज सुधारों की दिशा में क्रांति शबाब पर थी। मीडिया ने बड़ी संख्या में नारेबाजी करती भीड़ और लोगों के गुस्से को जिस हद तक प्रचारित किया था वह किसी से छिपा हुआ नहीं है।यह सच है कि दमिश्क और अलेप्पो के बीच हामा में अशांति थी। यह कोई नई बात नहीं थी। यह जिला हमेशा से ही मुस्लिम ब्रदरहुड का केंद्र रहा। बशर अल असद के पिता हाफिज अल असद ने 1982 में विद्रोह को बुरी तरह से कुचल दिया था। इस दौरान मुस्लिम ब्रदरहुड के लगभग 10,000 सदस्यों की मौत हो गई थी।लेकिन इस जब हामा में अशांति प्रदर्शनों में तब्दील हुई तो अमेरिका के राजदूत रॉबर्ट स्टीफन फोर्ड और फ्रांस के राजदूत एरिक शेवैलियर ने वैश्विक कूटनीति में मुख्य भूमिका अदा की थी। उन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया। उन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था।लेकिन इस अवसर पर जब हामा में अशांति प्रदर्शनों में तब्दील हुई तो अमेरिका के राजदूत रॉबर्ट स्टीफन फोर्ड और फ्रांस के राजदूत एरिक शेवैलियर ने वैश्विक कूटनीति में मुख्य भूमिका अदा की थी। उन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया।दोनों राजदूतों ने जॉर्डन के पास लेबनान सीमा और डेरा में होम्स का दौरा किया। जब मैंने पूछा कि आखिर क्यों पश्चिमी राजदूत इस क्रांति को और भड़काने दिया जा रहा है? इसके जवाब में बशर अल असद के एक वरिष्ठ सलाहकार ने अपना हाथ उठाते हुए कहा, "इससे पता चलता है कि हमारी पहुंच कहां तक बढ़ गई है।"राजदूतों ने न सिर्फ हिंसाग्रस्त स्थानों पर पहुंच कर विपक्ष के प्रति समर्थन जताया बल्कि इस विद्रोह में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी भी उपलब्ध कराई।
--आईएएनएस
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