नवरात्रि पूजन का पहला दिन अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक माने जाने वाली देवी शैलपुत्री के पूजन का दिन है। प्रतिपदा तिथि इनकी पूजा की जाती है इसलिये इन्हे प्रथम दुर्गा भी कहा जाता है। देवी पुराण के अनुसार हिमालय की कोख में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री है। इन्हे ही पार्वती या हेमवती भी कहा जाता है। इनके शैलपुत्री कहलाने के पीछे भी एक रोचक कहानी है।
भगवान शंकर के स्वसुर और माता पार्वती के पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन कराया। शंकर जी से रुष्ठ होने के कारण उन्होने पार्वती को भी निमंत्रण में नही बुलाया। फिर भी पार्वती से रहा नही गया तो उन्होन शिव जी से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। ना नुकुर के बाद शिव जी ने उन्हे अनुमति तो दे दी लेकिन जब मां पार्वती यज्ञ स्थल पर पहुंची तो उनके पिता ने उनका अपमान किया।
अपमान से खिन्न होकर माता ने यज्ञ की अग्नि में खुद को समाहित कर दिया। खबर पाते ही क्रोधित हुए भगवान शंकर पहुंचे तो उन्होने सम्पूर्ण यज्ञ को तहस नहस कर दिया और माता पार्वती की राख को लेकर हिमालय पर्वत पहुंचे। हिमालय को राख समर्पित करते हुए शिव जी ने अपने तप से माता पार्वती को पुनः जीवित किया। तबसे पार्वती को ही हेमवती व
शैलपुत्री कहा है।
शैलपुत्री की आराधाना करने के लिए मिट्टी की बेदी बनाकर उसमें जौ और गेहूं बोये जाते हैं और इस पर कलश स्थापित किया जाता है। कलश पर स्वास्तिक और त्रिशूल बनाकर इसकी पूजा करें करते हैं।
शैलपुत्री के पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होता है। जिससे जीवन के दुःख दूर होते है। प्रतिपदा के दिन ही घटस्थपना भी की जाती है अर्थात आज ही के दिन मूर्ति स्थापित की जाती है।
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